शेयर्स मार्केट में फ्यूचर्स और ऑप्शन्स में क्या अंतर है?- Difference in Future and Options

Published On: September 9, 2025
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Difference in Future and Options

शेयर मार्केट में निवेश करने वाले ज्यादातर लोग ‘फ्यूचर्स’ और ‘ऑप्शन्स’ Difference in Future and Options के बारे में जरूर सुनते हैं। ये दोनों डेरिवेटिव्स के प्रकार हैं और इनके माध्यम से ट्रेडिंग करना थोड़ा जटिल हो सकता है। डेरिवेटिव्स कुल चार प्रकार के होते हैं: फ्यूचर्स, ऑप्शन्स, फॉरवर्ड और स्वैप्स। इनमें से फ्यूचर्स और ऑप्शन्स का बाजार में ट्रेड होता है, जबकि फॉरवर्ड और स्वैप्स का व्यापार ओवर-द-काउंटर (OTC) होता है। चलिए, इन दोनों डेरिवेटिव्स को विस्तार से समझते हैं।

डेरिवेटिव्स क्या हैं?- What are derivatives?

डेरिवेटिव्स ऐसे इंस्ट्रूमेंट्स होते हैं जिनकी कीमत किसी अन्य संपत्ति (Asset) पर आधारित होती है। इनकी खुद की कोई अलग कीमत होती है। इसे समझना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, लेकिन एक उदाहरण से इसे समझा जा सकता है।

फ्यूचर्स (Futures):

मान लीजिए, एक किसान और एक व्यापारी के बीच प्याज की खरीद-फरोख्त के लिए एक डील होती है। आज 1 तारीख है और प्याज की कीमत 20 रुपये प्रति किलो है। व्यापारी किसान से कहता है कि वह 30 तारीख को 30 रुपये प्रति किलो की दर से 1000 किलो प्याज खरीदेगा। किसान इसके लिए तैयार हो जाता है। यहां दोनों को इस अनुबंध का पालन करना होगा, चाहे बाजार भाव कुछ भी हो।

व्यापारी सोचता है कि 30 तारीख तक प्याज की कीमत 50 रुपये प्रति किलो हो जाएगी, इसलिए वह अभी ही डील कर लेता है। जबकि किसान सोचता है कि अगर 30 तारीख तक कीमत 10 रुपये हो गई तो यह सौदा उसके लिए फायदेमंद रहेगा। इस प्रकार, यह अनुबंध फ्यूचर्स कहलाता है।

ऑप्शन्स (Options):

ऑप्शन्स एक ऐसा अनुबंध है जो खरीदार को उस संपत्ति को एक निर्धारित तिथि और कीमत पर खरीदने या बेचने का अधिकार देता है, लेकिन यह बाध्यकारी नहीं होता।

एक उदाहरण से इसे समझते हैं। चिमणराव और गुंड्याभाऊ अच्छे दोस्त हैं। गुंड्याभाऊ के पास एक एकड़ जमीन है जिसकी कीमत 10 लाख रुपये है। चिमणराव को खबर मिलती है कि उस जमीन के पास से एक हाईवे गुजरने वाला है, जिससे जमीन की कीमत बढ़ सकती है। लेकिन यह खबर पक्की नहीं है।

चिमणराव गुंड्याभाऊ से एक डील करता है कि वह 6 महीने बाद उस जमीन को 10 लाख रुपये में खरीदेगा, लेकिन इसके लिए अभी 2 लाख रुपये का टोकन देगा। अगर 6 महीने बाद चिमणराव यह डील कैंसल कर देता है, तो उसे टोकन की रकम वापस नहीं मिलेगी।

इस तरह चिमणराव को जमीन खरीदने का अधिकार मिल गया, लेकिन वह बाध्य नहीं है। अगर प्रोजेक्ट आता है और जमीन की कीमत बढ़ जाती है, तो चिमणराव को फायदा होगा। अगर प्रोजेक्ट नहीं आता, तो वह 2 लाख का नुकसान सहन करेगा।

यह एक कॉल ऑप्शन का उदाहरण था। इसी प्रकार, अगर बिक्री का अनुबंध होता, तो उसे पुट ऑप्शन कहा जाता है।

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निष्कर्ष:

फ्यूचर्स और ऑप्शन्स दोनों ही डेरिवेटिव्स के महत्वपूर्ण प्रकार हैं जो निवेशकों को संभावित लाभ और जोखिम दोनों का सामना करने का अवसर देते हैं। फ्यूचर्स में एक निश्चित तिथि पर निर्धारित कीमत पर खरीद या बिक्री का अनुबंध होता है, जबकि ऑप्शन्स में खरीदार को केवल अधिकार होता है, बाध्यता नहीं। इन दोनों के माध्यम से शेयर मार्केट में निवेश करके संभावित लाभ कमाया जा सकता है, लेकिन इन्हें समझना और सही समय पर सही निर्णय लेना बहुत महत्वपूर्ण होता है।

अगर आप इन डेरिवेटिव्स के बारे में और जानकारी चाहते हैं, तो हमारे ब्लॉग पर नजर बनाए रखें। शेयर मार्केट की जटिलताओं को आसान भाषा में समझाने के लिए हम हमेशा तत्पर हैं।

Raj Dhanve

Raj Dhanve is a seasoned financial expert with over eight years of experience in the share market, mutual funds, and various investment vehicles. With a deep understanding of market trends, portfolio management, and wealth creation strategies, Raj has been instrumental in guiding investors toward informed financial decisions. His insights are backed by years of hands-on experience in analyzing market dynamics and helping clients achieve their financial goals.

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